13 सितंबर 1948 को शुरू हुए इस Operation की शुरआत आज़ादी के 13 महीने बाद होती हे लेकिन आज़ादी के बाद एक साल के भीतर क्या क्या हुआ और क्यों ज़रूरत पड़ी ऑपरेशन पोलो की आज हम इसी पर बात करेंगे |
शुरुआत करते हे 15 अगस्त 1947 से भारत की आज़ादी का दिन इसी दिन हर भारतवासी ने आज़ादी की साँस ली थी लेकिन ने इतना आसान भी नहीं था |
इस आज़ादी ने बहुत से लोगों से उनका घर , परिवार और ज़मीन छीन ली थी भारत पाकिस्तान के बटवारे का वो घाव आज तक नहीं भर पाया हे |
उस समय भारत में बहुत सारे रजवाड़े हुआ करते थे , देश की आजादी के बाद ज्यादातर रजवाड़े भारत में शामिल हो गए लेकिन जूनागढ़, कश्मीर और हैदराबाद भारत में शामिल होने को तैयार नहीं थे | ये अलग देश के रूप में मान्यता पाने की कोशिश में थे।
उस समय हैदराबाद के निज़ाम ओसमान अली खान आसिफ थे और उन्होने फैसला किया कि उनका रजवाड़ा न तो पाकिस्तान और न ही भारत में शामिल होगा |
भारत छोड़ने के समय अंग्रेजों ने हैदराबाद के निजाम को या तो पाकिस्तान या फिर भारत में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। अंग्रेजों ने हैदराबाद को स्वतंत्र राज्य बने रहने का भी प्रस्ताव दिया था।
हैदराबाद में निजाम और सेना में वरिष्ठ पदों पर मुस्लिम थे लेकिन वहां की बहुसंख्य आबादी हिंदू (85%) थी।
शुरू में निजाम ने ब्रिटिश सरकार से हैदराबाद को Commonwealth देशों के अंर्तगत स्वतंत्र राजतंत्र का दर्जा देने का आग्रह किया। हालांकि ब्रिटिश, निजाम के इस प्रस्ताव पर सहमत नहीं हुए।
हैदराबाद उस समय देश का सबसे धनी राज्य था | निजाम भारत में हैदराबाद का विलय बिल्कुल नहीं कराना चाहते थे और निजाम ने मोहम्मद अली जिन्ना से संपर्क कर यह जानने की कोशिश की थी क्या वह भारत के खिलाफ उनके राज्य का समर्थन करेंगे |
निज़ाम उस समय पाकिस्तान को भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए हथियार खरीदने के पैसे भी भेजने लगे थे और जब इसकी खबर तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को हुई तो वो
निजाम के इस कदम से चौंक गए और उन्होंने उस समय के गर्वनर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन से संपर्क किया।
माउंटबेटन ने पटेल को सलाह दी कि इस चुनौती को भारत बिना बल प्रयोग के निपटे। प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू माउंटबेटन की सलाह से सहमत थे और वह भी इस मसले का शांतिपूर्ण समाधान करना चाहते थे।
हालांकि पटेल इससे बिल्कुल असहमत थे। उनका कहना था कि हैदराबाद की हिमाकत को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है |
उधर मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) के पास उस वक्त 20 हजार रजाकार थे जो निजाम के लिए काम करते थे और हैदराबाद का विलय पकिस्तान में करवाना चाहते थे या स्वतंत्र रहना चाहते थे।
रजाकार एक निजी सेना थी जो निजाम के शासन को बनाए रखने के लिए थी | निजाम हथियार खरीदने और पाकिस्तान के साथ सहयोग करने में लगे हुए थे |
इस समय तक भारत और हैदाराबाद के बीच बातचीत टूट चुकी थी और भारत ने उसपर हमला करने की तैयारी कर ली थी।
सरदार पटेल को पता था की अभी अगर हैदराबाद का भारत में विलय नहीं हुआ तो ये भारत के लिए नासूर बन जायेगा |
सरदार पटेल के नेतृत्व में भारतीय सेना के मेजर जनरल जेएन चौधरी ने योजना बनाई और 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने हैदराबाद पर हमला कर दिया।
भारतीय सेना की इस कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे।
भारतीय सेना को पहले और दूसरे दिन कुछ परेशानी हुई और फिर विरोधी सेना ने हार मान ली। 17 सितम्बर की शाम को हैदराबाद की सेना ने हथियार डाल दिए।
पांच दिनों तक चली कार्रवाई में 1373 रजाकार मारे गए थे। हैदराबाद के 807 जवान भी मारे गए। भारतीय सेना ने अपने 66 जवान खोए जबकि 97 जवान घायल हुए।
कल्पना कीजिए अगर सरदार पटेलजी की वह दूरदर्शिता तब ना रहती, तो आज भारत का नक्शा कैसा होता और भारत की समस्याएं कितनी अधिक होतीं।